"लक्ष्य से अपना ध्यान न हटायें "
कुछ लोग जीवन में बहुत मेहनत करते हैं बावजूद इसके वे जीवन में सफल नहीं हो पाते हैं,इसका क्या कारण है? इसका कारण है जब काफी मेहनत कर चुके होते हैं और फिर भी सफलता हाथ नहीं लगती तब हम निराश और हताश हो जाते हैं,फिर हम इधर-उधर देखने लगते हैं दूसरे की नकल करने लगते हैं और इस तरह से हम अपना रास्ता और लंबा कर लेते हैं और साथ ही साथ अपने गुणों को भी खो देते हैं,हमेशा ध्यान रखें कि प्रत्येक व्यक्ति में कोई न कोई विशिष्ट गुण(talent) होता है,बस उसे हमें पहचानना होता है,लेकिन दूसरों की देखा-देखी में हम अपने उन गुणों को पहचान ही नहीं पाते।आप बहुत मेहनत कर चुके हैं, आपने काफी तैयारी भी की होगी, बहुत सी पुस्तके आपने पड़ी होगी फिर आपको निराश होने की जरुरत नही्ं, आपने अब तक जो कुछ भी सीखा है उसका सही उपयोग करके आप सफलता हासिल कर सकते हैं, तो निराशा को पीछे छोड़ आगे बढ़िए। चलिए इसे एक कहानी द्वारा समझते हैं--एक बार स्वामी विवेकानंद के पास एक आदमी आया जो बहुत उदास और परेशान था. उसने विवेकानंद से कहा की मै हर काम मन लगा के पूरी मेहनत के साथ करता हूँ.लेकिन उसमे कभी पूरी तरह से कामयाब नहीं हो पाया. मेरे साथ के कई लोग उस काम को पूरा करके मुझसे आगे निकल चुके है लेकिन में कहीं न कहीं अटक जाता हूँ. मुझे मेरी समस्या का समाधान बताएँ।
विवेकानंद बोले – जाओ पहले मेरे पालतू कुते को घुमा के लाओ. तुम्हे तुम्हारे सवाल का जवाब मिल जायेगा. कुछ देर बाद जब वह आदमी कुत्ते को लेकर वापस आया तो उसके चेहरे पर अब भी उत्सुकता और स्फूर्ति थी जबकि कुत्ता पूरी तरह से थक चूका था.
विवेकानंद ने उस व्यक्ति से पूछा की तुम अब भी नहीं थके लेकिन यह कुत्ता कैसे इतना थक गया.
वह बोला – स्वामी जी मैं तो पुरे रास्ते सीधा सीधा चलता रहा लेकिन यह कुत्ता गली के हर कुत्ते के पीछे भोंकता और भागता और फिर मेरे पास आ जाता. इसलिए सामान रास्ता होने के बावजूद यह मुझसे ज्यादा चला और थक गया.
विवेकानंद ने कहा की इसी में तुम्हारे सवाल का जवाब है. तुम और एक सफल व्यक्ति दोनों एक सामान रास्ते पर चलते हैं और बराबर मेहनत करते हैं लेकिन तुम बीच बीच में अपनी तुलना दूसरों से करते हो, उनकी देखा देखी करते हो और उनके जैसा बनने और उनकी आदतें अपनाने की कोशिश करते हो जिसकी वजह से अपनी खासियत खो देते हो और रास्ते को लंबा बना कर थक जाते हो . यह थकान धीरे धीरे हताशा में बदल जाती है. इसलिए अगर किसी काम में पूरी तरह कामयाब होना चाहते हो तो उसे लगन और मेहनत के साथ अपने तरीके से करो न की दूसरे की देखादेखी से या उनके साथ अपनी तुलना करके. आप दूसरों से प्रेरणा ले सकते है या उनसे कुछ सिख सकते हैं लेकिन उनकी नक़ल, करके या उनसे ईर्ष्या करके अपनी रचनात्मकता को खोते हैं. दूसरों से कभी होड़ न लगाए. अपनी गलतियों से कुछ सीखें. सफलता और असफलता अपने आपमें कुछ भी नहीं है. सफल एक गरीब भी हो सकता है और असफल एक अमीर भी. यह हमारा दृष्टिकोण तय करता है. इसलिए अपने लक्ष्य खुद बनायें और उन पर सीधा चले ताकि रास्ता लंबा न हो पाए।
-प्रदीप प्रकाश, writer,blogger.
कुछ लोग जीवन में बहुत मेहनत करते हैं बावजूद इसके वे जीवन में सफल नहीं हो पाते हैं,इसका क्या कारण है? इसका कारण है जब काफी मेहनत कर चुके होते हैं और फिर भी सफलता हाथ नहीं लगती तब हम निराश और हताश हो जाते हैं,फिर हम इधर-उधर देखने लगते हैं दूसरे की नकल करने लगते हैं और इस तरह से हम अपना रास्ता और लंबा कर लेते हैं और साथ ही साथ अपने गुणों को भी खो देते हैं,हमेशा ध्यान रखें कि प्रत्येक व्यक्ति में कोई न कोई विशिष्ट गुण(talent) होता है,बस उसे हमें पहचानना होता है,लेकिन दूसरों की देखा-देखी में हम अपने उन गुणों को पहचान ही नहीं पाते।आप बहुत मेहनत कर चुके हैं, आपने काफी तैयारी भी की होगी, बहुत सी पुस्तके आपने पड़ी होगी फिर आपको निराश होने की जरुरत नही्ं, आपने अब तक जो कुछ भी सीखा है उसका सही उपयोग करके आप सफलता हासिल कर सकते हैं, तो निराशा को पीछे छोड़ आगे बढ़िए। चलिए इसे एक कहानी द्वारा समझते हैं--एक बार स्वामी विवेकानंद के पास एक आदमी आया जो बहुत उदास और परेशान था. उसने विवेकानंद से कहा की मै हर काम मन लगा के पूरी मेहनत के साथ करता हूँ.लेकिन उसमे कभी पूरी तरह से कामयाब नहीं हो पाया. मेरे साथ के कई लोग उस काम को पूरा करके मुझसे आगे निकल चुके है लेकिन में कहीं न कहीं अटक जाता हूँ. मुझे मेरी समस्या का समाधान बताएँ।
विवेकानंद बोले – जाओ पहले मेरे पालतू कुते को घुमा के लाओ. तुम्हे तुम्हारे सवाल का जवाब मिल जायेगा. कुछ देर बाद जब वह आदमी कुत्ते को लेकर वापस आया तो उसके चेहरे पर अब भी उत्सुकता और स्फूर्ति थी जबकि कुत्ता पूरी तरह से थक चूका था.
विवेकानंद ने उस व्यक्ति से पूछा की तुम अब भी नहीं थके लेकिन यह कुत्ता कैसे इतना थक गया.
वह बोला – स्वामी जी मैं तो पुरे रास्ते सीधा सीधा चलता रहा लेकिन यह कुत्ता गली के हर कुत्ते के पीछे भोंकता और भागता और फिर मेरे पास आ जाता. इसलिए सामान रास्ता होने के बावजूद यह मुझसे ज्यादा चला और थक गया.
विवेकानंद ने कहा की इसी में तुम्हारे सवाल का जवाब है. तुम और एक सफल व्यक्ति दोनों एक सामान रास्ते पर चलते हैं और बराबर मेहनत करते हैं लेकिन तुम बीच बीच में अपनी तुलना दूसरों से करते हो, उनकी देखा देखी करते हो और उनके जैसा बनने और उनकी आदतें अपनाने की कोशिश करते हो जिसकी वजह से अपनी खासियत खो देते हो और रास्ते को लंबा बना कर थक जाते हो . यह थकान धीरे धीरे हताशा में बदल जाती है. इसलिए अगर किसी काम में पूरी तरह कामयाब होना चाहते हो तो उसे लगन और मेहनत के साथ अपने तरीके से करो न की दूसरे की देखादेखी से या उनके साथ अपनी तुलना करके. आप दूसरों से प्रेरणा ले सकते है या उनसे कुछ सिख सकते हैं लेकिन उनकी नक़ल, करके या उनसे ईर्ष्या करके अपनी रचनात्मकता को खोते हैं. दूसरों से कभी होड़ न लगाए. अपनी गलतियों से कुछ सीखें. सफलता और असफलता अपने आपमें कुछ भी नहीं है. सफल एक गरीब भी हो सकता है और असफल एक अमीर भी. यह हमारा दृष्टिकोण तय करता है. इसलिए अपने लक्ष्य खुद बनायें और उन पर सीधा चले ताकि रास्ता लंबा न हो पाए।
-प्रदीप प्रकाश, writer,blogger.
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