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Showing posts from August, 2018

' एक भिखारिन की ममता ' Ek Bhikharin ki Mamta '

रमाकली एक बूढ़ी(old) गरीब महिला है, उसका इस दुनिया में कोई नहीं है, वह घूम-घूम कर भीख मांगती है और उसी से अपना गुजारा करती है, जो पैसे मिलते हैं, उसी से भोजन का इंतजाम करती है और कुछ पैसे बचा भी लेती है, बचे हुए पैसे वह अपने एक पुराने से बक्से में जमा कर देती है, एक दिन की बात है, वह भीख मांगकर अपनी झोपड़ी की तरफ वापस जा रही थी, तभी उसे एक बच्चे की रोने की आवाज सुनाई दी, उसने देखा सड़क के किनारे एक मासूम बच्चा खड़ा है, जो जोर-जोर से रो रहा था, वह बूढ़ी उसके पास गई और सर पर हाथ फेरकर चुप कराया उसे बच्चे पर दया आ गई और उसे गोद में उठाकर अपनी झोपड़ीनुमा घर में ले आई, अगले दिन उसने बच्चे को नहलाकर उसके लिए खाना बनाया और उसे अपने हाथों से बड़े प्रेम से खिलाया, बच्चे ने भी खुशी-खुशी खाना खाया, उसका भीख मांगने का समय हो गया था, बूढ़ी रमाकली ने सोचा बच्चे को घर में अकेला छोड़ना ठीक नहीं होगा इसलिए उसने बच्चे को अपने साथ ही ले लिया, भीख मांगते -मांगते वह एक कोठी पर पहुंची, उसने गेट खटखटाया कुछ देर बाद एक कीमती साड़ी पहने एक महिला बाहर आई भीख देने के बाद उसकी नजर उस बच्चे पर पड़ी उसे देखते ही र...

कर्तव्य के प्रति निष्ठा ही धर्म हैl

प्रेरक कहानी *Motivational Story in Hindi * कर्तव्यपरायण व्यक्ति कभी भी अपने कर्तव्य से विमुख नहीं होता है, फिर चाहे उसके सामने कोई भी बड़ा प्रलोभन क्यों न आ जाए . ऐसा ही एक बार महारथी कर्ण के साथ हुआ, कौरवों और पांडवों के बीच जब संधि असफल हो गई तब श्रीकृष्ण हस्तिनापुर वापस लौटने लगे, महारथी कर्ण उन्हें विदा करने सीमा तक आए, मार्ग में कर्ण को समझाते हुए श्रीकृष्ण ने कहा-'कर्ण तुम सूतपुत्र नहीं हो ,तुम तो महाराजा पांडु और देवी कुंती के सबसे बड़े पुत्र हो,यदि दुर्योधन का साथ छोड़कर तुम पांडवों के पक्ष में आ जाओ तो तत्काल तुम्हारा राज्याभिषेक कर दिया जाएगा '.यह सुनकर कर्ण बोले- वासुदेव मैं यह जानता हूँ कि मैं माता कुन्ती का पुत्र हूँ, किन्तु जब सभी लोग सूतपुत्र कहकर मेरा तिरस्कार कर रहे थे, तब केवल दुर्योधन ने मुझे सम्मान दिया और फिर मेरे भरोसे पर ही दुर्योधन ने पांडवों को चुनौती दी है । अब उसके उपकारों को भूलकर मैं उसके साथ विश्वासघात करूँ,क्या यह उचित है?  ऐसा करके मैं अधर्म का भागी नहीं बनूंगा ? मैं यह जानता हूँ कि युद्ध में विजय पांडवों की ही होगी, लेकिन आप मुझे अपने कर्तव...

मन का पर्दा Man Ka Parda in Hindi

Article On Man in Hindi -" मन का पर्दा "  अक्सर हम बाह्य चीज़ों का भिन्न-भिन्न तरीकों से आकलन करते रहते हैं, क्योंकि हमारा मन भिन्न-भिन्न विचारों (thoughts)से भरा हुआ है, इसलिए हम किसी एक निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाते हैं, हम कन्फ्यूज हो जाते हैं, ऐसी स्थिति में हम चीज़ों को उस रुप में नहीं देख पाते हैं,जैसी वह वास्तव में है .इसलिए हमें मन(man)को योग की अवस्था में स्थिर करना होगा, तभी हम चीज़ों को उसके वास्तविक रूप में देख पाएंगे . सद्गुरु जग्गी वासुदेव कहते हैं -पतंजलि ने योग की बहुत ही आसान और टेक्निकल परिभाषा(technical definition) दी। जब लोगों ने पूछा, ‘योग क्या है?’ तो उन्होंने जवाब दिया, ‘चित्त वृत्ति निरोध:’। जिसका मतलब है कि जब मन के भीतर के सारे बदलाव खत्म हो जाएं तो वही योग है। तभी आप हर चीज को ठीक वैसा ही देखेंगे, जैसी वह है। अगर आप हर चीज को उसी रूप में देखें, जैसी वह है, तो आपको इस सृष्टि के साथ भी एकात्मकता दिखाई देगी। सद्गुरु आगे कहते हैं- हालांकि यह एक आसान सी चीज है, लेकिन यह जटिल बन गई है, क्योंकि आप अपने विचार, सोच, राय व पहचान से बंधे हुए हैं। कुछ समय के लिए...